लकीरों की ज़ंजीरों से आजाद
खुले आसमां की सैर को आमदा है ये पंछी
धुंध के पार जो है उसकी मंजिल
उसकी तलाश में लहूलुहान तो है पर थका नहीं...
खुले आसमां की सैर को आमदा है ये पंछी
धुंध के पार जो है उसकी मंजिल
उसकी तलाश में लहूलुहान तो है पर थका नहीं...
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